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अंशानुपात में प्रमोदभाव रखना चाहिए।
मानव में रहे आत्मा के प्रति जिनके हृदय में प्रेमभाव प्रकट होता है, ऐसे लोग भूल कर भी कभी किसी की निंदा या ईर्षा नहीं करते। और यदि प्रसंगोपात मोहांध हो, निंदादि दोषपोषक प्रवृत्ति के जाल में फंस भी जाय तो ऐसी स्थिति में अपनी आत्मा में पुनः ऐसे दोषों की पुनरावृत्ति न हो, इस प्रकार के सख्त उपायों का आयोजन करते हैं और श्री वीर प्रभु के मार्ग पर गमन करते हैं।
अनिंदक एवं ईष्यालु मनुष्यों के हृदय निर्मल...पवित्र होने से उनके हृदय में सम्यक्ज्ञान का प्रकाश फैल सकता है। साथ ही ऐसे लोग प्राणी मात्र के प्रेम पात्र बनते हैं और अन्यजनों को सक्रिय सहायता प्रदान कर मोक्ष-मार्ग का प्रवास आरम्भ कर सकते हैं। इस तरह गृहस्थावास या साधु अवस्था में वे अपना कर्तव्य निभाने में सदैव समर्थ सिद्ध होते हैं।
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