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सम्यग--दृष्टि प्राप्त करनेवाला जैन मन्य वविवेक के बल पर सत्य-धर्म को प्राप्त कर सकता है। साथ ही ऐसे व्यक्ति में कदाग्रह एवं अतरग्थवृत्ति तो कभी रह नहीं सकती। वस्तुतः वे जो भी लेखन करते हैं या उपदेश प्रदान करते हैं, उसमें अपेक्षाभाव अवश्य होता है। अर्थात लेख. ग्रंथ उपदेश में से वे उपयोगी सारांश, अपेक्षाएँ व उद्देश्यों को अवश्य बटोर लेते है। वे अपेक्षापूर्वक आचार-विचारों को आत्मसात कर तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल व भावादि के विशिष्ट प्रकार के ज्ञाता बन समस्त विश्व को शुभ विचार और शुद्ध आचारों का लाभ प्रदान करने में समर्थ बनते हैं। ऐसे सम्यग्दृष्टि लोग तैयार करने में....उत्पन्न करने में कटोर परिश्रम करना पड़ता है।
ऐसे सम्यगदृष्टि लोग निरक्षरों से भी अल्प संख्या में होने के बावजूद भी अपने अपूर्व ज्ञानबल से अपेक्षाकृत मूर्ख लोगों को स्वयं द्वारा निर्धारित मार्ग पर ले जाने में सफल हो सकते हैं और गवर्नर-जनरल, पॉलिटिकल एजेन्ट व संसद सदस्य की भाँति धार्मिक विचार--क्षेत्र में अत्यच्च पद पर आमढ होते हैं।
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