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शुभ मनोवर्गणा द्रव्य के पुद्गलों को महात्मा जिस स्थान पर परित्याग करते (छोडते) हैं, निसंदेह उक्त स्थान की गणना तीर्थ स्वरुप पवित्र भूमि के रूप में होती है। जबकि अशुभ मनोवर्गणा द्रव्य पुद्गलों का जहाँ परित्याग किया जाता हे वह स्थान अपवित्र भूमि माना जाता है।
जिन लोगों ने जहाँ भक्ति-गुंजन किया हो... धुन मचायी हो- उक्त स्थान पर मनोवर्गणा अन्य मनुष्यों के सम्बन्ध में उत्पन्न भक्ति के परिणाम में निमित्त कारणभूत परिणत होती है।
जिन गुफा और कन्दराओं में महात्माओंने समाधि टीक वैसे ही ज्ञान विषयक चिंतन किया होता है । उनकी आत्मा से जो मनोवर्गणा द्रव्य पुद्गल गिरते हैं, वे चिपचिपे.. लसदार एवं मारी हों तो लंबे काल तक कायम रहते हैं और उक्त स्थान पर आगंतुक मनुष्यों के लिए योग समाधि व ज्ञानादि भावना में निमित्त स्वरूप सहायक सिद्ध होते हैं।
किहीं व्याभिचारिणी कामी स्त्रियों से कामोत्तेजक पुद्गल उत्पन्न हों, एक ही स्थान पर बार-बार मंडग कर काम सम्बन्धित विचारों में तत्मय होते हैं। और वे वहाँ झइते हैं । फली स्वरूप ऐसा पप्रकार के कामोत्तेजक विचारोत्पन्न होने में सहायता करते हैं। कसाई आदि विविध शुभाशुभ विचार करनेवालों के बाबत में भी इसी प्रकत समझना चाहिए।
सिद्धाचलादि तीर्थस्थानों में शुभ लेश्या के पुद्गल झ डे होते हैं । फलतः वहाँ की यात्रा करनेवालो में उक्त पुद्गल उत्तम भावना के निमित्त बनते हैं।
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