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मन की चंचलवृत्ति दा होते ही तथा ध्यान के माध्यम से मन को ध्येय-वस्तु में स्थिर करने से आत्मा के उपयोग में वृद्धि होती है... वैसे ही मन में बाद्य पदार्थ सम्बन्धित हर्ष या शोक का भाव उत्पन्न न हो, ऐसी शिक्षा ग्रहण करने से विश्व में अलौकिक जीवन प्राप्त हो सकता हैं । साथ ही उसे स्व-निर्धारित मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं। मन की ऐसी सर्वोत्तम अवस्था प्राप्त किये बिना जगत में कोई भी महान महात्मा नहीं हो सकते।
- जिस के मन में बाह्य पदार्थों के कारण हर्ष अथवा शोक की उत्पत्ति नहीं होती, वास्तव में ऐसी अवस्था प्राप्त आत्मा सच्चे अर्थ में क्रियायोगी बन, सदैव निर्लिप्त रह कर प्रायः असंख्य जीवों का उद्धार करने में समर्थ होता है। कदापि ऐसा मानव आत्मा में रमण करने में जब समर्थ बनता है तब अपने आत्मा के गुणों का आविर्भाव कर तथा परमात्म पद प्राप्त कर अंत में अनंत सुखों का स्वामी बनता है ।
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