Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 111
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७. नीति-अनीति अनीतिमय विचारों के परित्याग से स्व-आत्मा का हित होता हैं और समस्त विश्व का हित भी परम्परागत कम-अधिक प्रमाण में साध सकते हैं । - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी पादरा दिनांक : २४-२-१९१३ . नीति विषयक सद्गुणों के अभाव में आचार व विचार की शुद्धि नहीं रहती। प्रामाणिकता के साथ प्रवृत्ति करनेवाले मानव-मन में शुभ लेश्या का उदय होता है। मनोद्रव्य का प्रायः समय - समय पर ग्रहण होता है। लेकिन अनंत मनोद्रव्य को समय - समय पर जीव ग्रहण करता है और परित्याग करता है। प्रामाणिक नीति आदि सदगुणों से आत्मा उत्तम मनोद्रव्य को ग्रहण करती है और अशुभ मनोद्रव्य का परित्याग करती है । शुक्ल लेश्या के परिणाम भी बिना उत्तम नैतिक सद्गुणों के नहीं हो सकते। ऐसा अनुमान है कि जिसका आचार अनीतिमय है असके मन में शुभ लेश्या के सद्भाव के लिए कोई स्थान नहीं होता । ठीक वैसे ही अशुभ कृष्ण लेश्या के परिणाम तथा अशुभ लेश्याजनक मनोद्रव्य को समय - समय पर ग्रहण करता है ।। अशुभ मनोद्रव्य ग्रहण किये हुए आत्मा के नीच परिणाम की परम्परा में वृद्धि करने हेतु समर्थ सिद्ध होते हैं। पागल कुत्ते के विष की भाँति अशुभकारी मनोद्रव्य की परम्परा अशुभ विचारों को उत्पन्न करने में समर्थ होती है। __अनीतिकारी आचार व विचार से स्व-आत्मा को अपरिमित हानि होती है। इतना ही नहीं बल्कि उक्त विचारों के कारण जिस तरह सरोवर में फेंके पत्थर उसमें असंख्य लहरें उत्पन्न करते हैं, उसी तरह सम्बन्धित व्यक्ति तथा समस्त विश्व पर उसकी परम्पगगत कम-अधिक प्रमाण में असर हो कर ही रहता है । ९२ For Private and Personal Use Only

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