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हैं और वाचक-वर्ग के हृदय को जहर से आकंट भरने में सहायक बनते हैं, वास्तव में ऐसे लोगों के जन्म धारण करने की उपयोगिता कतई नहीं होती। जो स्वार्थ, तृष्णा एवं लोभादि के अधीन हो, लेख लिख कर सत्धर्म से दूर जाते हैं। वास्तव में वे मनुष्य कहलाने के लायक बिल्कुल नहीं होते।
जिन लेखों के माध्यम से मानव-मन में सद्गुणों का बीजागेपण होता हो और दुर्गुणों से सम्बंधविच्छेद करने ही मचि प्रकट होती हो साथ ही आत्मोन्नति हेतु पुरुषार्थ करने की भावना व प्रवृत्ति उत्पन्न होती हैं. निम्संदेह ऐसे लेख जगत के इतिहास में सुवर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य होते हैं। जो लेखक विश्व को दिव्य लेख समान सदगुणों से विभूषित करते हैं वे लेखक ही लेखक नाम का सार्थक करते है।
जिन लेखों के माध्यम से किसी की व्यक्ति गत टीका-टिप्पणी व आलोचना बाद्य व अभ्यंतर से ज्ञात नहीं होते और दोष तथा गण सम्बन्धित पात्रों का प्रभाव दूसरे पर न पडता हो- वही उत्तम लेखक होते हैं।
अशुभ विचारों का प्रचार व प्रसार करनेवाले लेखकों को वास्तव में प्लेग के जंतु फैलानेवाले पिग्य ही मानने चाहिए।
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