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४४. प्लेग के जंतु
जो लेखक विश्व को दिव्य लेख समान सद्गुणों से विभूषित करते हैं, वे लेखक ही लेखक नाम को सार्थक करते हैं। अशुभ विचारों का प्रचार व प्रसार करने वाले लेखक तो प्लेग के जंतु फैलानेवाले पिम्म ही मानने चाहिए। --श्रीमद बुद्धिसागरमूरिजी
पादरा दिनांक : २१-३-१९१२
गग व द्वेष के कारण जिनके मन-मस्तिष्क व अंतःकरण वामित हो गये हों, वे अपने मन, वचन एवं काया के बल को अहित मार्ग में प्रवर्तित कर सकते हैं। प्रायः वे वाणी, लेख तथा सत्ता के माध्यम से अन्य जीवों को परेशान....त्रस्त करने का प्रयत्न करते हैं। ___क्रोधीजन क्रोध के कारण जगत में अशुभ विचारों का वातावरण फैला कर एक तरह से हिंसक बनते हैं।
क्रोध व ईर्ष्यादि दुर्गुण-धारक कईं लेखक अपने पत्र-पत्रिका आदि में बारूद भर वाचक-वर्ग के हृदय में क्रोधादि दुगुर्गों की अधिकाधिक उत्पलि हों, ऐसे उत्तेजक लेख लिख कर भाव कसाई की पदवी का सरे आम अनुसरण करते हैं। जबकि कई लेखक प्रतिशोध लेने की भावना से अशुभ लेख म्पी विषवृक्ष बोते हैं । फलतः उसके दुष्परिणामों को उन्हें भोगना पड़ता है... महना पड़ता है।
मन, वचन व काया की शक्तियों का सार्वजनिक रूप से दुरुपयोग करनेवाले लोग वस्तुतः अपने पाँवो पर कुल्हारी मर कर अपना ही नाश करते हैं।
जो लेखक अपने द्वाग लिखित लेखों से विश्व में किस प्रकार के शुभाशुभ परिणाम होंगे, इसके सूक्ष्म रहय्य ये अज्ञात होते हैं, वे लेख लिखने लायक (योग्य) नहीं माने जाते । केवल पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित कर तथा ग्रन्थादि का लेखन कर अमुक कामना की पूर्ति करने के प्रधान उद्देश्य को हृदय में सजो कर जो कार्य करते
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