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वास्तव में ज्ञानी गीतार्थ मुनिवर स्वाधिकागनुसार प्रत्येक मनुष्य को दुर्गुणों के जाल से मुक्त होने तथा सद्गुण-प्राप्ति के आचार-विचार प्रदान कर मात्रकल्पवृक्ष की उपमा को सार्थक करते हैं।
मानव मात्र को धिक्कारनेवाले, तिरस्कृत करनेवाले व असह्य पीडा पहुँचानेवाले असंख्य लोग होते हैं। किन्तु उसमें रहे दुर्गुणों को दूर कर उसके प्रति सदैव माता का प्रेम प्रदर्शित करनेवाले निस्वार्थी, दयावान, प्रेमी एवं ज्ञानी ऐसे केवल मुनिवर ही होते हैं।
गीतार्थ गुरु की दृष्टि विशाल होती है। उनमें एकाध डॉक्टर की भाँति मानवजन्य दोष दूर करने तथा उनकी आत्मा की उन्नति साधने के विविध उपाय अन्वेषित करने की शक्ति व क्षमता होती है।
जो दोषितों को हलका कमीना और निष्कृष्ट समझते हैं, उनकी गणना उत्तम पुरुष, महात्मा या सज्जनों में कभी नहीं होती। दूसरे को अपने से कम न समझनेवाले एकमात्र मुनिवर ही धर्म का प्रचार व प्रसार करने में समर्थ होते हैं।
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