Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 99
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१. दयालु माता तुल्य-गीतार्थ गुरु गीतार्थ गुरु की दृष्टि विशाल होती है। वे मानव के दुर्गुणों को दूर कर उसके प्रति सदैव माता-तुल्य प्रेम प्रदर्शित करते हैं। वे दयावान. निम्वार्थी, ज्ञानी मुनिवर होते हैं। श्रीमद् बुद्धिमागरमूरिजी पादरा दिनांक : १५-२-१९१२ गीतार्थ गुरु के वचनानुसार जो मानव धर्मागधना करते हैं और धर्म-सेवा में रत रहते हैं, वे कभी पथ-भ्रष्ट नहीं होते, ना ही गलत मार्ग में फंसते है। भूल कर भी कभी द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव से प्रतिकूल हो. धार्मिक मनोवृत्तियों का व्यय नहीं करना चाहिए। शुद्ध प्रेम के बिना कभी किसी को अपने धर्म के प्रति आकृष्ट नहीं कर सकते। औरंगजेब एवं अल्लाउद्दीन खिलजी की भाँति जो धर्म के नाम पर तलवार चलाते हैं, उन्हें परमात्म पद की प्राप्ति नहीं होती। सत्य. प्रतिबोध व शुद्ध प्रेम के बिना धर्म की वृद्धि नहीं कर सकते। जिनके हृदय-सागर में शुद्ध प्रेम एवं दया की शीतल तरंगे नहीं उटती रोखे लोगों के आचार व विचार प्रायः शुष्क होते हैं। गीतार्थ गुरु ऐसी सभी बातों की मनुष्यों को समझ देते हैं और उन्हें धर्म-मार्ग पर अग्रसर करते हैं। जबकि सगुणहीन मानव सत्य धर्म-मार्ग में अधर्म रूपी कँटीले वृक्ष लगाते हैं और वहीं काँटे उनके शरीर में धंसने से व्यथित हो, दुःखी होते हैं। अरे, सद्गुणविहीन विद्वान व्यक्ति ज्वालामुखी की तरह होता है। शुद्ध प्रेम, दया, परोपकार, गंभीरता, सौजन्येता, नगर-सेवा, आत्म-दृष्टि आदि सद्गुणविहीन लक्ष्मीरूपी सत्ताधारी मानव एकाध कुत्ते, बिलाव और बाघ की तरह अपना जीवन व्यतीत करता है। उपर्युक्त गुणों के अभाव में गुरु भी सद्गुणों के आधार पर दुनिया का पालन-पोषण नहीं कर सकते। For Private and Personal Use Only

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