________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तो क्षणिक वस्तुओं के माध्यम से प्राप्त आनन्दग्स, आनन्दग्स नहीं होता। नाटकसिनेमा देखने अथवा बच्चों को खेलाकर जो आनन्दानुभूति प्राप्त की जाती है, निहायत वह क्षणिक होने के कारण उसे शाता वेदनीय मानी जाती है और एक प्रकार से वह दुःखप्रद ही है।
___ बाद्य पदार्थजन्य आनन्दग्य खत्म हो जाता है। अतः आत्मज्ञानी-ध्यानी योगीजन आत्मा के सहजानंद ग्य-प्राप्ति हेतु अंतर में लीन-तल्लीन हो जाते हैं। आत्मा ग्वयं नित्य होने के कारण आनन्दम्य भी नित्य है। फलतः सहजानंद का उपभोग लेते ही बाह्य पदार्थ द्वारा आनन्द रस लेने की इच्छाएँ मृतप्रायः हो जाती हैं और आत्मा को सहजानंद रस का अनुभव तथा उसका दृढ निश्चय हो जाने से मन, वाणी व काया के योग का व्यापार भी आत्मा के आनन्दरम
ज्ञानीजनों की अंतिम खोज आत्मा का सहजानंद रस-प्राप्ति होने से ग्य के कारण उन्हें जो-जो अनुभूतियाँ होती हैं उसमें भी रुचि पैदा होती है। फलतः उक्त साधनों द्वारा उनका चित्त स्थिर होता है।
For Private and Personal Use Only