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३८. दृढ़ संकल्प करो
जिस-जिस अंश में पदार्थ का जितना स्वरूप ज्ञात होवे और वह दूसरों के लिए उपयोगी सिद्ध हो, ऐसा हो तो उसका वैसा स्वरूप करने में विवेक से काम लेना चाहिए। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
पादरा दिनांक : २०-३-१९१२
आत्मा में जो-जो गुण प्रकटित करने हों, उनके सम्बन्ध में क्रमशः विचार करना चाहिए। तदुपरांत उक्त गुणों की प्राप्ति हेतु मन व हृदय में अपूर्व उत्साह पैदा करना चाहिए। साथ ही मन ही मन ऐसा दृढ संकल्प करना चाहिए कि उक्त सद्गुणवल्लरी मेरी आत्मा में प्रस्फुटित होनी ही चाहिए।
__कई दुर्गुण भी सद्गुणरूप में परिवर्तित किये जा सकते हैं, इस तरह का चिंतन नित्यप्रति करना चाहिए। वैसे ही पक्का निश्चय करना चाहिए कि उत्साह के बल पर गुणावगेधक कर्मावरण को आसानी से छिन्न-भिन्न कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की बाद्य पदार्थ की वासना यह आत्मा का मूल स्वभाव नहीं है, इस बात का पूरा विश्वास रखना चाहिए। वैसे ही इस तरह का दृढ निर्धार व्यक्त करना चाहिए कि बिना किसी प्रकार की वासना....मोह के करने जैसा उपयुक्त कार्य मुझे करने चाहिए।
इसी प्रकार यह भी संकल्प करना चाहिए कि जब तक वीतरागावस्था में रहने की अवस्था मेरी नहीं है तब तक मुझे शुद्ध प्रेम धारण कर निष्काम भाव से धर्मसाधना करनी चाहिए और सदा-सवर्दा सत्य, प्रिय व हितकारक वचनों का उच्चारण करना चाहिए।
जिस-जिस अंश में पदार्थ का जितना स्वरूप ज्ञात होवे और वह दूसरों के लिए उपयोगी सिद्ध हो, ऐसा हो तो उसका वैसा स्वरूप करने में विवेक से काम लेना चाहिए।
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