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३७. पर-निंदा
विषवेलड़ी
पांडित्य प्राप्त करना सरल है। साधुवेश धारण करना सरल है। लेकिन ईर्ष्या व निंदा का त्याग करना, वास्तव में मुश्किल है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
पादरा दिनांक : ९-३-१९१२
कहावत है कि, "कनक व कामिनी का परित्याग करना सहज सरल बात है। लेकिन परनिंदा व इर्ष्या का त्याग करना अत्यंत दुष्कर है।"
जो व्यक्ति पगई निंदा करने हेतु अपनी योग सिद्धि का उपयोग करता है वह अपनी शक्तियों को खो बैठता है। किसी की बुगई करने के पूर्व यदि मनुष्य तनिक भी विचार करे तो सचमुच वह निंदा करने की आदत ही छोड़ देगा।
दूसरों की निंदा करनेवाले अपने आत्मा का ही अपकर्ष करते हैं। निंदक की जीभ तलवार की धार के समान तेज होती है। वैसे ही ईर्षा करनेवाले की आँख धूमकेतु की उपमा को सार्थक करती है। निंदा व ईर्षा करने से आत्मा की निर्मलता नहीं होती।
पांडित्य प्राप्त करना सरल है। साधुवेश धारण करना सरल है। लेकिन ईर्षा व निंदा का त्याग करना वास्तव में मुश्किल है।
जिस तरह जहरीले सर्प से सभी भयभीत होते हैं, उसी तरह निंदक व ईष्यालु व्यक्ति से सब डरते हैं। भगवान महावीर का कहना है कि पापी जीवों के प्रति सदैव दयाभाव रखना चाहिए ना कि उसका तिरस्कार कर या उसके प्रति क्रोध प्रकट कर नये कर्मबंधन नहीं करने चाहिए। जो लोग देवाधिदेव महावीर कथित मार्ग का अनुसरण करने का प्रयत्न करते हैं। उन्हें सर्व दोषित....पापी जीवों के प्रति करुणाभाव रखना चाहिए और जिसमें जिस अंश में गुण निहित हो, उक्त गुणों के
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