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या प्रवृत्ति जग पडे तो ऐसा साधु व श्रावक महावीर प्रभु के मार्ग से च्युत...भ्रष्ट होता
___चंडकौशिक नाग पर श्री महावीर प्रभु की जैसी करुणा-दृष्टि थी यदि उक्त दृष्टि का महावीर के अनुयायियों में प्रादुर्भाव हो जाय तो निस्संदेह उनके सहवास सम्पर्क का अन्यजनों पर शुभ परिणाम....खासा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। अरे, जैनियों के शुभ आचार व शुभ विचार में इतनी सारी शक्ति है कि दूसरों पर उसका असर हुए बिना नहीं रहेगा।
___ अतः मानव को चाहिए कि उत्तम आचार व विचारों को वृद्धि करने का अहर्निश प्रयत्न करते रहना चाहिए। वैसे ही अशुभ विचार व अमांगलिक आचारों को जडमूल से उखाड़ फेंकना चाहिए।
हे आर्य जैनों! तुम्हें आत्मिक सद्गुणों को विकसित करने का अमूल्य अवसर जो प्राप्त हुआ है, उसे सफल बनाना न चूको।
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