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मौनधारण करने के उपरांत भी जो सदगुणों का उपाजन करता है। निस्सदह उसके गुणों की मीठी महक बिना कुछ कहे निरंतर सर्वत्र प्रसारित होती रहती हैं।
जनमानस में कीर्ति बढ़े या अमुक प्रकार के स्वार्थ की सिद्धि हो या मेरा नाम प्रसिद्धि की ज्योत से जगमगाता रहे आदि अप्रशस्य भावनाओं का परित्याग कर यदि उत्तम चरित्र का संवर्धन करने का प्रयत्न करने से जनसमाज को सन्मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं। कितनैक अल्पभाषी लेकिन उत्तम सद्गुण व चारित्र धारक लोगों को दृष्टिगोचर....परिलक्षित कर कई लोग स्वेच्छया ऐसे सर्वोत्तम चारित्रलक्षी बनने हेतु प्रयत्नों की पराकाष्टा करते हैं।
उत्तम चारित्र व मनमोहक उपदेश प्रदान करने की अद्भुत शक्ति का संचय होता है तो वह दुग्ज-शर्करा योग सदृश होता है।
अहंकार त्याग करने के फलस्वरूप पांडित्य प्राप्ति होने पर उत्तम सदगुणमय चारित्र-मार्ग में प्रयत्नशील हो, निज विद्वत्ता को सफल करना चाहिए।
निरंतर बकवास करते रहने के बजाय अल्पभाषी बन, अपने गुणों के बल पर दूसरों को प्रभावित करना चाहिए।
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