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३३. सर्वोत्तम जगत्
सेवा
शुद्ध प्रेम के बल पर जो गुण जिस अंश में उजागर किये हैं उसी अनुपात में उन सद्गुणों का दूसरों पर प्रभाव डाल सकते हैं। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
पादरा दिनांक : २-३-१९९३
आत्मा के सद्गुणों को विकस्वर किये बिना कभी महान् नहीं हो सकते । अतः उत्तम पुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ कर आत्मोन्नति का मार्ग ग्रहण करना चाहिए।
सद्गुणों का संचय करने से दुर्गुणों में परिणत शक्ति निज का अशुद्धत्त्व परित्याग कर सद्गुणों में परिवर्तित होकर शुद्धता में परिणित होती है। अतः तीर्थकर देवों के जीवन चरित्र का पठन कर सदगुण निहित प्रवृत्ति करनी चाहिए।
चूंकि शुद्ध प्रेम का महासागर प्रकटित किये बिना आत्मा को लगा पाप-कीच हटा नहीं सकते...उसे धो नहीं सकते। जीवन में एक भी दुर्गुण का पोषण...प्रादुर्भाव न हो, साथ ही सद्गुण व उसके उद्देश्यों में ही अहर्निश प्रवृत्ति होनी चाहिए ऐसा एवं सृष्टि के सभी जीवों को भूल सत्तान्नर्गत परमात्म बुद्धि से अवलोकन करने की शक्ति एक मात्र शुद्ध प्रेम ही अर्पित करता है।
बिना किसी प्रकार से स्वार्थादि दोष के निजात्मा की भाँति सर्व आत्माओं को देखने वाला शुद्ध प्रेमोदधि में स्नान कर परम समता-रस की शीतलता प्राप्त करता
शुद्धता के प्रेमी भूल कर भी कभी संकुचित वृत्ति से धर्म-मार्ग का प्ररुपन नहीं कर सकते । सभी जीवों को स्व-आत्मा की तरह मान, उनकी रक्षादि करने में भक्ति करना, निहायत यह सर्वोत्तम जगत् सेवा है।
शुद्ध प्रेम के बल पर जो गुण जिस अंश में उधागर किये हैं। उसी अनुपात में उक्त सद्गुणों का दूसरों पर प्रभाव डाल सकते हैं। किसी भी प्रकार की शक्ति
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