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एवं रुचि से भिन्न लौकिक या धार्मिक रुढी के वशीभूत हो कर आत्मा को भेइचाल्न वृत्ति में आबध्द कर ऊपर के सोपान पर चढ़ नहीं सकते।
अतः हे आत्मन! निष्कट भाव से तुम अपना मार्ग ग्रहण कर ले और इस बात का दृढ विश्वास रख कि सद्गुणार्थ किया गया एकाध संकल्प भी कभी निष्फल नहीं जाता। प्रत्येक जीव की उसकी योग्यता के अनुसार भलाई करने का अहर्निश प्रयत्न करता रह। किसी प्रकार की निंदा-लांछन के कारण तुम्हें किंचित मात्र भी निरूत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि प्रायः उर्ध्वगामी होती है-तभी तो :
हे चेतन! तुम अपने मूल स्वभाव-धर्म के अनुसार जगत पर दृष्टिपात करोगे तो निस्संदेह विशाल दृष्टि विकसित होगी। साथ ही यह न भूल कि तुम्हें नित्य प्रति यही धर्म व्यापार करना है
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