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माधु की सेवा सुश्रूषा करने वाले तीर्थकर नाम कर्म उपार्जन करते हैं। सच्चे दिलोदिमाग में उनकी सेवा-टहल किये बिना उनके मन को जीतना असंभव है। जबकि उनकी सच्ची सेवा-सुश्रूषा से आशीर्वाद के पात्र बनते हैं।
- साधु की संगति से आत्मा उच्च गति प्राप्त करके ही रहती है। निष्ठापूर्वक उनकी सेवा करते हुए परमात्मपद प्राप्त कर सकते है।
निम्संदेह वे लोग धन्य हैं जिनका मन साधुओं के दर्शन मात्र से प्रफुल्लित होता है।
वास्तव में साधु-सेवा यह परम सुख का एकमेव कारण है। जिसमें विवेकदृष्टि है वह साधु-संतों का मान-सम्मान व स्वागत किये बिना नहीं रहता।
साधु परमार्थ के लिए देह धारण करते हैं । सकल जनों के पाप धोकर अपना रूप प्रदान करनेवाले साधुवर्ग को कोटिशः प्रणाम!
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