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साधने से परम सुख का आस्वाद ले सकते है।
पिंडग्थ, पदस्थ व रूपस्थादि सालम्बन ध्यान के तीन प्रकार हैं। इन तीनों का स्वरूप जान लेने के पश्चात् इनके (तीन ध्यान) द्वाग आत्मा का ध्यान कर सकते हैं। इस तरह सबसे पहले सालम्बन ध्यान की भूमिका स्थिर-निश्चित करने के उपरांत निरालम्बन ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं।
सालम्बन ध्यान को सविकल्प ध्यान भी कहा जाता है और मपातीत ध्यान को निर्विकल्प ध्यान । इनमें से सविकल्प ध्यान यदि कारण है तो निर्विकल्प ध्यान कार्य है।
शुभ एवं अशुभ विचारों के अनुसार मानव शुभा-शुभ ध्यान में रमण करता है। यदि अशुभ ध्यान को टालना हो-मार्ग से हटाना हो तो उसका एक ही रामबाण उपाय है और वह है अधिकाधिक मात्रा में शुभ ध्यान का सेवन करते रहना।
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