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लिपट जाते हैं और सद्गुण अमूल्य रत्नों की तरह प्रयत्नों की पराकाष्टा करने पर ही प्राप्त होते हैं।
जहाँ शोर-बकोर या हल्ला-गुल्ला हो, ऐसे धर्म के प्रति बालजीवों की रुचि होना सहज सरल बात है। लेकिन उपशमादि धर्म के प्रति बिना ज्ञान के हुए और प्रमाद को दूर किये बिना रुचि पैदा होना निहायत दुर्लभ बात है।
__धर्म की चर्चा-चिंतन करने से ज्ञान, दर्शन व चारित्र-मार्ग की ओर प्रयाणगति होती है। प्रायः ऐसे उपायों की योजना करनी चाहिए, जिससे आत्मानंद गुण की प्राप्ति सहज संभव है। वैसे आत्मा के सहजानंद गुणों की प्राप्ति हेतु आत्मिक गुणों का उपासक बनना आवश्यक है। इस तरह निरंतर प्रयत्नशील होने से आत्मा के स्वरूप में जब उसकी स्थिरता हो जाती है तब आनन्द प्रकटित हुए बिना नही रहता।
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