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जो जो शारीरिक-क्रियाएँ सम्पन्न होती है, उनके तथाकथित रहण्य भी मानसिक विचार शक्ति से प्राप्त किये जा सकते हैं। ज्ञान के बल पर ज्ञानीजन द्रव्य, क्षेत्र व कालादि प्रसंग पर नये कार्य कर सकते हैं।
बालजीव आत्मसाधक ज्ञानी की बाद्य क्रियाओं को देख कर उनका आदर कर सकते हैं क्योंकि आत्मार्थी ज्ञानी की बाह्यक्रियाएँ भी अमुक शुभ अध्यवसाय के उद्देश्य से मुक्त होती हैं। लेकिन बालजीव उक्त उद्देश्यों को अवगत-जानने में सफल नहीं हो सकते।
मानसिक विचारों के प्रवाह से शरीर व जगत् पर बहुत असर होता है। विचार-शक्ति के बल पर स्थूल में परिवर्तन कर सकते हैं। इसके सूक्ष्म रहस्य को वास्तव में तत्त्ववेत्ता ही भली-भाँति समझ सकते हैं।
आँख आदि अवयवों की चेष्टाओं पर से सहज अनुमान लग सकता है कि हमारे मन में अमुक प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ है। विचार-शक्ति द्वारा पुस्तक लेखन कर सकते है और पुस्तकादि के माध्यम से व्यक्ति के आचार-विचार में परिवर्तन कर सकते हैं।
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