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अप्रशस्य गग को प्रशम्य राग में परिवर्तित करना चाहिए। सदगुरु मुनिराज के प्रति प्रशस्य राग धारण करने से अप्रशय्य गग के परिणाम क्षय होते हैं। फलस्वरूप ज्यों-ज्यों सद्गुरु के प्रति हमारे मन में अधिकाधिक मात्रा में प्रेम भाव पैदा होता है त्यों-त्यों आत्मा धर्म-मार्ग पर अधिकाधिक उच्च (श्रेष्ठ) बनती जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि सद्गुरु के प्रति रहे गग-अनुराग मे आत्मा में अयंग्य गुणों का प्रादुर्भाव होता है।
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