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जिस धर्म में दया नहीं है, उसे धर्म की संज्ञा देना सरासर गलत है। दया रूपी नदी-तट पर हमेशा धर्म रूपी अंकुर प्रस्फुटित होते हैं।
उत्तम मनुष्य अभयदान देना अपना आद्य कर्त्तव्य समझते हैं। अरे, इग्लैंड व अमरिका जैसे पाश्चात्य राष्ट्रों में भी दयातत्त्व का प्रकाश दिन ब दिन प्रज्वलित होने लगा है। अभयदान देनेवाले जीव इस भव में और परभव में हमेशा सुखी होते हैं।
दान के अनेक प्रकार में अभयदान का क्रमांक प्रथम हैं। अभयदान देनेवालों को किसी भी तरह के क्षणिक फल की अपेक्षा किये बिना निरंतर अपनी प्रवृत्ति जारी रखनी चाहिए।
इतिहास साक्षी है कि संप्रति, अशोक व कुमारपाल सदृश गजा-महाराजाओं ने पशु-पक्षियों के लिए पिंजगपोलों का निर्माण कर उत्तम कल्पवृक्ष का बीजारोपण किया था। वस्तुतः दया यह एक सार्वजनिक धर्म है। अतः सभी धर्म के मतावलम्बियों को दया-धर्म का प्रचार प्रसार करने के यथेष्ट प्रयत्न करने चाहिए।
राज्य में शांति व सुख-चैन का वातावरण होता है तब हर कहीं दया-तत्त्व का प्रकाश फैलता जाता है | संसार में ज्यों-ज्यों ज्ञान का प्रचार बढ़ता जाएगा और दुनिया के लोगों की रुचि धर्म के प्रति अधिकाधिक प्रमाण में बढ़ती जाएगी त्योंत्यों उनकी दृष्टि समक्ष दया की देवी साकार होगी। अभयदान के प्रचारक श्रेष्ठ गति व उत्कृष्ट सुख प्राप्त किये बिना नहीं रहते।
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