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जीवन व्यतित करने की कोशिश करनी चाहिए। संभव है हम उसके अनुसार चलने में असमर्थ हों, फिर भी मन में सदाचार की भावना सतत जागृत रखनी चाहिए।
__ हमारे पास अल्प हो और बाहरी दुनिया में अधिक होने का दिखावा वाणी आदि के माध्यम से हरगिज न करें। कारण जो लोग प्रमाणिकतापूर्वक प्रवृत्ति करते हैं। उनके वाणी व वचन का प्रभाव दूसरों पर अचूक पडता है।
जो अपना कार्य सुधारने में समर्थ है, निःसंदेह वह अन्यजनों का सुधारने में समर्थ बन सकता है। फलस्वरूप सर्व प्रथम हमें अपनी शक्तियाँ प्रकटित करनी चाहिए तब कहीं दूसरों की शक्तियों को प्रकटित करने के लिए यत्न करना चाहिए। टीक वैसे ही स्वयं का श्रेय करने का यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिए। साथ ही साथ दूसरे लोगों का श्रेय करने हेतु सदैव यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिए।
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