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१५. शुभ विचार -
गंगाजल
नीच विचारों का हमेशा के लिए परित्याग करना हों तो अहर्निश शुद्ध विचारों में ही रमण करना चाहिए। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
नवसारी दिनांक : २७-१-१९११
नियमितरूप से चिंतन करने की आदत डालनी चाहिए। मन ही मन असीम विचार करते रहने से मस्तिष्क को नुकसान पहुँचता है।
प्रायः मानसिक उच्चता वृद्धिगत हो. ऐसे विचार करते रहने से शुभ संस्कारों में वृद्धि होती है। मैत्री आदि भावना को निरंतर अपने मन में संजोये रखने से आत्मिक शुद्धि होती है।
सर्वप्रथम रजोगुण व तमोगुण के विचारों को मन में से सर्वस्वी निकाल, सात्त्विक गुणों से उसे ठसाठस भर देना चाहिए । वैसे ही सात्त्विक विचार करने की आदत डालने से रजोगुण व तमोगुणात्मक विचारों का सहज में ही नाश होता है। सुविचार के कारण कुविचार स्वयं ही शांत हो जाते हैं।
चिंतनीय विचारों को हर्ष के विचारों में तब्दील करना चाहिए और अस्थिर विचारों को स्थिर। अपवित्र प्रेम के विचारों को पवित्र प्रेम के विचारों में परिवर्तित कर देना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि नीच विचारों का हमेशा के लिए परित्याग करना हों तो अहर्निश उच्च...शुद्ध विचारों में ही रमण करना चाहिए।
उच्च विचारों में व्याप्त मन प्रायः उच्च लेश्या के विचारों का अभ्यास करने में समर्थ सिद्ध होता है। और फिर एक बार शुद्ध विचारों का अभ्यास दृढ़ हो जाने पर अशुद्ध विचारों का यकायक प्रवेश होना प्रायः असंभव है। शुद्धविचारों की शक्ति बढ़ जाने पर उसके मुकाबले अशुद्ध विचारों का जोर टिक नहीं सकता।
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