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चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को दान प्रदान करने के लिए प्रेरित करने से महान लाभ होता है। जिस तरह एक बीज से असंख्य बीज उत्पन्न होते हैं उसी तरह एक बार दान देने से लाखगुना लाभ होता है।
दानधर्म को शील, तप व भावना आदि तीनों धर्म से अग्रक्रम दिया गया है। उसके पीछे गहन रहस्य छिपा है। दानधर्म की सिद्धि किये बिना मानव उससे उच्च धर्म का यथायोग्य अधिकारी नहीं बन सकता।
___दान से तीर्थंकर पद की प्राप्ति होती है। केवलज्ञान प्राप्ति के अनन्तर भी तीर्थकर देव उपदेश स्वरूप दानधर्म का सेवन करते हैं। इस तरह तीर्थकर स्वयं भी दानधर्म सम्बन्धित अपना कर्त्तव्य अचूक निभाते हैं तो सामान्यजनों को भला इस सम्बन्ध में क्या कहना?
दान दिये बिना कभी नहीं रहना चाहिए। दान के कुल पाँच प्रकार हैं : अभयदान, सुपात्रदान, उचितदान, अनुकंपादान व कीर्तिदान । मानव को प्रायः ज्ञानदान, वस्त्रदान, अन्नदान एवम् औषधिदान का अपने जीवन में उपयोग कर निज आत्मा को परिपुष्ट करना चाहिए।
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