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को पवित्र बनानेवाले साधु-संतों की जो संगति करते हैं, ऐसे लोग निस्संदेह अपनी आत्मा को निर्मल बना सकते हैं।
दया की उत्कृष्ट अवस्था को आत्मसात् कर सर्व जीवों पर दया करने की भावना से सदा-सर्वदा ओत-प्रोत रहना चाहिए।
___दयाधर्म सम्बन्धित अपनी भूमिका दृढ करते ही अन्यान्य सद्गुण अपने आप प्राप्त हो जाते हैं। जगत् के जीवों की पूज्य माता दया है, मन में ऐसी धारणा धारण कर उसकी आराधना-उपासना करने हेतु सदैव तत्पर रहना चाहिए।
विशुद्ध प्रेम व दया के बिना दान भी नहीं दे सकते ।जिनका हृदय-सागर दया के विचारों से लबालब भर कर रह-रह कर छलक रहा हैं, उनके मन में शत्रुत्व, बैरभाव, कलह, हिंसा, क्रोध, विश्वासघात आदि दुर्गुण भला कैसे रह सकते हैं ? अर्थात् कदापि नहीं रह सकते। अतः प्रतिदिन दयाभाव में लीन तल्लीन हो, प्राणियों की रक्षा करने में सन्नध्य रहे साथ ही उन्हें अभयदान प्रदान करें।
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