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१४. पर उपदेश
कुशल बहुतेरे
बाह्यतौर पर ज्ञान-प्राप्ति कर जो उपदेशक उपदेश देने निकल पडते हैं, वह अपने उपदेश से अन्यजनों को लाभ के बजाय नुकसान पहुंचा सकते हैं। साथ ही योग्यता विहीन उपदेश भी प्रायः निष्फल जाता है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
बिलीमोरा दिनांक : २४-१-१९१२
बाह्यतौर पर ज्ञान-प्राप्ति कर जो उपदेशक उपदेश देने निकल पडते हैं वे अपने उपदेश से अन्यजनों को लाभ के बजाय नुकसान पहुँचा सकते हैं। साथ ही योग्यता विहीन उपदेश भी प्रायः निष्फल जाता है। ___वही उपदेशक उत्तम... श्रेष्ठ माना जाता है, जिसकी वाणी से निरंतर सद्गुणों का ही लाभ हो सकता है। गुणानुराग, मध्यस्थ गुण (तटस्थता) व शुद्ध हृदयगुण के बिना किये गये उपदेश की अचूक असर कदापि नहीं होती। वास्तव में देखा जाय तो वही उपदेश उत्तम होता है, जिस उपदेश के माध्यम से आत्मिक सद्गुण प्राप्ति की लालसा जगती है और दुर्गुणों से दूर रहने की बुद्धि पैदा होती है।
ठीक उसी तरह गुणानुराग व मध्यस्थ गुण के बिना उपदेश श्रवण करनेवाला भी उपदेश का रहस्य तथा मर्म आत्मसात् नहीं कर सकता। प्रायः उपदेश का बहुतकुछ आधार उपदेशक के आचार-विचार पर निर्भर रहता है। अतः सुयोग्य उपदेशक एवं योग्य शिष्य का मिलन होता है तभी उपदेश की कीमत आंकी जा सकती है।
निस्पृह भाव से उपदेश देनेवाले को एकांत धर्म की प्राप्ति होती है। उपदेशक महान लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हाँलाकि श्रोतावृन्द को इसका लाभ होता है या नहीं, इसका निश्चय नहीं कर सकते।
श्री. संपत्ति व राज्यदान से अधिक उपदेश दान अपने आप में श्रेष्ट दान है। जिसका अध्ययन विपुल हो, जिसने अतिशय श्रवण किया हो और जिसका अनुभव विशाल हो, वास्तव में ऐसा उपदेशक ही सर्वोत्कृष्ट मुंदर उपदेश दे सकता है।
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