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१३. सच्चा कर्मयोगी
जिसके विरोध में कोई दुर्जन नहीं होते ऐसे महात्मा के गुण कभी प्रकट नहीं होते। --श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी
वलसाड दिनांक : २२-१-१९१२
ईर्षालु व्यक्ति तुम्हारे विरोध में नाना प्रकार की बातें करें अथवा अफवाह फैलाये, फिर भी हे आत्मन्! उस ओर भूल कर भी कभी तुम ध्यान न दो! किसी प्रकार के मान-सम्मान...कीर्ति व अन्य बाबतों की स्पृहा किये बिना निरंतर ग्रंथलेखनादि कार्य करते रहने के उपरांत भी दि ईर्षालुजन महात्माओं को कीर्ति, मानसम्मान, पूजा-अर्चनादि प्रलोभनों के माध्यम से कलंकित...निंदित करने का लाख प्रयत्न करें तो भी उन्हें अपनी कार्म-निष्टा (धार्मिक-कार्य) से कभी पीछेहट नहीं करनी चाहिए। यदि स्वंय उत्तमोत्तम कार्यों में प्रवृत्ति करने में सक्षम हो और उसके कारण दुर्जन मारे ईर्षा के नीचा दिखाने के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग करता हो, फिर भी उसकी परवाह किये बिना हमेशा जनोपकारी प्रवृत्तियों को तिलाञ्जलि नहीं देनी चाहिए और ना ही दुर्जनों के अपशब्द सुनने चाहिए।
अपना कार्य पूरा करने में अत्यंत धैर्य धारण करना चाहिए। जिसका कोई शत्र न हो या जिसके विरोध में कोई दर्जन नहीं होते ऐसे महात्मा के गण कभी प्रकट नहीं होते। सूर्योदय के पूर्व कौएँ काँव-काँव करते हैं, इससे सूर्य अपने कार्य का परित्याग नहीं करता?
सभी लोग प्रशंसा करें ऐसा ही कार्य करना चाहिए, यह कभी संभव नहीं है। फलस्वरूप पारमार्थिक कार्य करनेवालों की कैसी भी निंदा...अपमान-अवहेलना क्यों न हों, फिर भी ऐसे परमोपकारी महात्मागण अपने मन, वचन व कार्य के परमार्थ
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