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से कभी विचलित नहीं होते। कई जातियों में विवाह के प्रसंग पर ससुगल-पक्षीय महिलाएँ दूल्हे को उलाहना देती हैं... उसकी टटोली करती हैं। लेकिन इससे कहीं दूल्हा बिना विवाह के थोड़ा रह जाता है। वैसे ही परमोपकार के कार्य करने में महात्मागण प्रायः लीन-तल्लीन रहते हैं।
निष्काम-वृत्तिवाले बुद्धिमान महात्माओं को धार्मिक कार्य करने में अनूटे आनन्द का अनुभव होता है। अतः परोपकारी धार्मिक कार्य किये बिना वे जीवित नहीं रह सकते।
हे आत्मन्! इसी तरह तुम भी निष्काम बुद्धि से प्रेरित हो, उपदेश व ग्रंथलेखन के कार्य सदैव करते रहो
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