Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. शुभ संस्कार पारे को सुवर्ण में तब्दील करना जितना कठीन कार्य है। ठीक उतना ही एक बार पडे अशुभ संस्कारों को शुभ संस्कारों में परिवर्तित करना जटिल कार्य है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी भाईंदर दिनांक : १८-१२-१९११ आत्मा में रही शक्तियों को विकस्वर करने के लिए उत्तमोत्तम पुरुषों की संगति...सम्पर्क की आवश्यकता है। शैशवास्था में सुसंस्कृत व अच्छे आचारविचारवाले लोगों के सहवास में रहना चाहिए। उसी तरह वैचारिक शक्ति को संपुष्ट करने हेतु ज्ञानी महापुरुषों के सतत संपर्क में रहना परमावश्यक है। जिस तरह कााँ अथवा सगेवर में गिरे मनुष्य पर कितना भी पानी आ जाय तो भी उसे पानी का बोझ कतई अनुभव नहीं होता, लेकिन यदि मनुष्य के सिर पर पानी से भरा एक घड़ा भी रख दिया जाय तो फोग्न उसे उसका बोझ महसूस होता है । टीक उसी तरह मनुष्य यदि अहंभाव का परित्याग कर कार्य करे तो उसे उसका बोझ नहीं लगता। किंतु अहंभाव...दुराग्रह से युक्त हो, कार्य करता है तो उसका उसे प्रक्षोभ...दुःख होता है। आचार-विचार सम्बन्धित अशुभ संस्कार हृदय में एक बार कुंडली मर कर अड्डा जमा गये हों तो बाद में यदि उन पर शुभ आचार-विचारों का संस्कारोपण करने के प्रयास नहीं किये जाय तो निःसंदेह अशुभ आचार-विचार में किसी प्रकार का कतई परिवर्तन संभव नहीं है। जिस तरह पारे को सुवर्ण में परिवर्तित करना अत्यंत कठीन कार्य है, उसी तरह एक बार पड़े हुए अशुभ संग्कारों को शुभ संस्कारों में परिवर्तित करना अत्यधिक जटिल कार्य है। शैशवाग्था से ही हृदय में अमुक प्रकार के शुभ आचार-विचार दृढ़ हो जाने के कारण वर्तमान में ऐसी मुंढा अवस्था अमुक गुणों की वजह से प्राप्त हुई है। हृदय For Private and Personal Use Only

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