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५. जीवन-पुष्प की
सुगन्ध-नैतिकता
वस्तुतः नैतिक यम के सिद्धांतों का स्वीकार किये बिना संसार में रहे लोगों को चिर शांति की प्राप्ति कभी नहीं होती। इसी तरह नैतिक गुणों के अभाव में सिर मुंडा कर साधु बननेवाले व धर्माचावों को भी प्रभुत्व की प्राप्ति नहीं होती। --श्रीमद् बुद्धिसागरमूरिजी
पालघर दिनांक : २३-१२-१९११
विद्वत्ता के साथ नीति होती है, ऐसा नियम कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता। अरे, नातिधर्म को लेकर निरंतर व्याख्या, प्रवचन व उपदेश झाइनेवालों में भी प्रायः उनके द्वारा की गयी भाषणबाजी की तरह नीति धर्म का अंश तक नहीं होता। टीक उसी भाँति अज्ञानियों में भी सर्वत्र नीतिधर्म नहीं हो सकता। वैसे ही लम्बा तिलक...मधुरी बानी के प्रतिनिधि व्यक्तियों में भी हमेशा नैतिकता...नौति सम्बन्धित आचारविचार दिखाई नहीं देते।
अहिंसा, सत्य, अग्नेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह एवम् ममता के त्याग रूपी यम को नैतिकधर्म की संज्ञा दी गयी है।
यम अथवा नैतिकधर्म से भ्रष्ट हुई दुनिया अपने हाथों अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारती है...मसलन वह स्वयं ही नरक की रचना करती है। और दो कदम आगे बढ़ कर असह्य वेदना व घोर दुःखों को न्यौता देती है।
ऐसी स्थिति में उच्च तात्त्विक ज्ञान व मत्समागम ठीक वैसे ही प्रथम नैतिक श्रम के सोपान पर चढ़े बिना समाधि की आशा करना, यह नितांत आकाश कुसुमवत् सदृश निरी मिथ्या कल्पना है।
___वस्तुतः नैतिक यम के सिद्धांतो का स्वीकार किये बिना संसार में रहे लोगों को चिर शांति की प्राप्ति नहीं होती। इसी तरह नैतिक गुणों के अभाव में सिर मुंडा कर साधु बननेवाले व धर्माचार्यों को भी प्रभुत्व की प्राप्ति नहीं होती।
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