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९. सत्संगति
पारसमणि
पारसमणि के स्पर्श मात्र ये लोहा सुवर्ण में परिवर्तित हो जाता है। किन्तु पार्श्वमणि लोहा नहीं बनता। इसी तरह सत्पुरुष प्रायः अपने संगी-साथियों को स्वयं के रंग में रंग कर अपने जैसा बनाते हैं। --श्रीमद बुद्धिसागरसूरिजी
दीव-दमण दिनांक : ६-२-१९१२
दुर्जन मनुष्य की संगति से मानसिक संताप होता है। उसी तरह उत्तम महात्माओं के लिए भी दुर्जन की संगत उद्वेग में वृद्धि करनेवाली होती है।
जबकि सज्जन मनुष्य को दुःख पहुँचाने के उपरांत भी वह पिली...पेर्ग हुई ईख की तरह रसता प्रदान करती है, जबकि दुर्जन व्यक्ति का यथेष्ट प्रमाण में मानसम्मान करने के उपरांत भी वह सताये बिना नहीं रहता।।
दुर्जन और मूर्ख को सच्चे मित्र की पहचान नहीं होती। दुर्जन दूसरों के दोष ही खोजता रहता है | हाँलाकि सत्पुरुषों की संगति से कोई भी पापी सन्जन बन जाता है। सज्जन दुर्जन की करतूत से मन में किसी प्रकार का खेद अनुभव नहीं करते। उत्तम पुरुष प्रायः दूसरों में रहे सदगुण ग्रहण करते हैं। और निरंतर उन्हें उच्च मार्ग पर अग्रसर करने के लिए प्रयत्नशील होते है। ठीक उसी तरह अनेक प्रकट के संकट आपत्ति-विपत्तियाँ सह कर भी दूसरों को सद्गुण प्रदान करने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं।
दुर्जनों द्वारा प्रदत्त आधि, व्याधि व उपाधि के बिना इस संसार में सन्जन लोगों को परख नहीं सकते। दुर्जन व्यक्ति उत्तम व्यक्तियों को अपार व असहनीय दुःख...पीडा पहुँचाने में कोई कोर-कसर उठा कर नहीं रखते। वे प्रायः अच्छी बात का भी विपरीत अर्थ लगाने में भी आगे-पीछे नहीं देखते। लेकिन ऐसे दुष्ट पाण्डियों को भी सज्जन पुरुष प्रयत्नों की पराकाष्ठा कर अपने वैचारिक ढाँचे में ढाल कर अपने जेसा बनाते हैं।
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