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उसके आशय को समझने का प्रयत्न करते हुए गुरु देव से सविनय प्रश्न पूछ कर वचनों के आशय को आत्मसात् करना चाहिए।
__वक्ता पुरुष के सर्व आशय...संपूर्ण अर्थ उनके कथन से व्यक्त नहीं होते। अतः वक्ता पुरुष के मन को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। हृदय में जितने विचार उत्पन्न होते हैं, उतने वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं कर सकते । फलतः वक्ता के हृदय में रहे सभी आशय में से कई प्रकट नहीं हो सकते, बल्कि भीतर ही उमडघुमड कर रह जाते हैं।
यहाँ पर प्रतिदिन अभिनव ज्ञान की उत्पत्ति होती रहती है। परिणामस्वरूप नित्य प्रति पहले की अपेक्षा निरंतर तथाकथित आशय में परिवर्तन होता रहता है।
अतः अमुक प्रकार के विचारों को परिलक्षित कर किसी वस्तु...बात के सम्बन्ध में मत तय कर सकते हैं। वस्तुतः तात्त्विक स्थिर नियमों का ज्ञान सदा-सवर्दा दो दूनी चार गुणी सदृश ही होता है।
_ विचार सम्बन्धित संयम रखने से नित्य नया ज्ञान संपादन-आत्मसात् करने का अवसर प्राप्त होता है।
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