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बढ़ते रहो। भव-भवान्तर में उपार्जित कर्म यदि उदित होकर अपने विविध रंग प्रदर्शित करें, फिर भी तुम हिम्मत न हारना...साहस न खोना। क्योंकि संसार में ज्ञानावरणीय इत्यादि कर्मों का क्षय किये बिना मुक्ति संभव नहीं है।
आहिस्ते-आहिस्ते नियोजित कार्य-योजना को पूरा करते रहो ।संभव है ऐसा करते हुए यकायक तुम्हें फलनिष्पत्ति के चिह्न दृष्टिगोचर न भी हो, तथापि सद्गुण प्राप्ति के अभ्यास को तिलाञ्जलि नहीं देनी चाहिए। कारण अच्छे कार्यों में सदैव विघ्न आते ही रहते हैं। अतः उक्त विघ्नों से कदापि भयभीत न हो, बल्कि निरंतर संघर्ष करते रहो । क्योंकि इन संकट, विघ्न व उपाधियों से संघर्ष किये बिना तुम्हारी गणना श्रीवीर के भक्तों में कदापि नहीं हो सकतीं।
हे चेतन! इस तथ्य को कभी न भूल कि कर्म के संयोग से क्रोधादि दुर्गुण प्रकटित होते हैं। अतः तुम अपनी शक्ति पर दृढ विश्वास रख, नित्यप्रति अभ्यास करते रहो। ऐसी उत्तमोत्तम धार्मिक सामग्री प्राप्त कर कई प्रकार के शुभ कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं। अतः प्राप्त शक्तियों का दुर्व्यय करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।
हे चेतन! निस्संदेह तुम्हारा धार्मिक अभ्यास व तुम्हारे मन में उत्पन्न शुभ विचार ही तुम्हें उच्च पद पर आरुढ करेंगे
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