________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बिना गुणदृष्टि के यदि सज्जनों को संगति में गतदिन अहर्निश रहने का अवसर आजाय फिर भी उनके सत्संग...सहवास का पूरा लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि दुर्जन प्रायः अपनी मिथ्या दृष्टि के कारण सज्जनों के आचार-विचार व व्यवहार का विपरीत अर्थ निकालते हुए अहितकारी परिणाम पैदा करते हैं।
हाँलाकि पार्श्वमणि के स्पर्श मात्र से लोहा सोना बन जाता है। किन्तु पार्श्वमणि भूल कर भी कभी लोहे में परिवर्तित नहीं होता। इसी तरह सत्पुरुष प्रायः अपने संगीसाथियों को स्वयं के रंग में रंग कर अपने जैसा बनाते हैं।
अतः हे चेतन! उत्तम सदगुणों की तेज-रश्मियाँ बिखेरने के लिए तुम सदैव पुरुषार्थ करो !!
१८
For Private and Personal Use Only