Book Title: Path Ke Fool
Author(s): Buddhisagarsuri, Ranjan Parmar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. अनुरोध हे आत्मन्! निरुपाधि अवस्था सुरक्षित रहे इस तरह उपकार में प्रवृत होकर तुम अपने में रहे शुद्ध गुणों की ध्यानधारणा करते हो। वैसे ही निरंतर निरवद्य....शुचिर्मय क्रिया में प्रवृत्तिशील बने रहो। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी बम्बई दिनांक : २९-१०-१९११ हे चेतन! तुम अनेक सत्पुरुष एवम् अनेकानेक पुरुषों के समागम...सहवास में आये हो, तुमने बहुत-कुछ देखा है, परखा है और अनुभव भी किया है। फलतः अब तो सार में सर्वोत्तम ऐसी निरुपाधि अवस्था के प्रदेश में मुक्त होकर संचार करते रहो। धर्म-प्रवृत्ति की उपाधियों से सम्बन्धित कई योगसंयोग तो तुम स्वंय हो कर उत्पन्न करते हो । अलबत, उसमें भी उपदेश का ही प्रमुख उद्देश्य है फिर भी निरुपाधि अवस्था सुरक्षित रहे, इस तरह उपकार में प्रवृत्त हो, सदैव अपने में रहे शुद्ध गुणों की ध्यान-धारणा करते रहो । वैसे ही निरंतर निरवद्य..शुचिर्मय क्रिया में प्रवृत्तिशील बने रहो। उच्च और निर्मल अध्यवसायों के हेतुओं का अवलम्बन करते रहो। साथ ही, 'उपकार का बदला अपकार' में मिलने पर भी सदैव प्रसन्न रहो और विविध प्रकार के आचार-विचार व वृत्ति के लोग अपने स्वभावानुसार कुछ भी बोलें या आचरण करें तो भी तुम तटस्थभाव से व्यवहार करते रहो। मानता हूँ कि धर्म-प्रचार और प्रसार करने की तुम्हारी तीव्र लालसा...शुभेच्छा है। तथापि आवश्यक अनुकूल सामग्री के अभाव में संकल्पित कार्य सिद्ध नहीं हो सकता, ना ही कार्य-सिद्धि संभव है। हाँलाकि जैन गुरुकुल के आचार-विचार उजागर करने के तुमने हर संभव प्रयत्न किये हैं। पर सब व्यर्थ! फिर भी तुमसे जो संभव है सो करो। लेकिन भूल कर भी उसके तत्कालिन परिणाम के विचार में खो कर अकर्मण्य मत बन जाना। For Private and Personal Use Only

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