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अवसर था, जब आपश्री के समुदाय द्वारा अनुवाद-कार्य के लिए मुके योग्य समज, अनुवाद-कार्यका दायित्व मुके सौंप रहे थे और मैंने नतमस्तक हो, पूज्यवरों का आदेश तत्काल शिरोधार्य कर अपनी सम्मति प्रदान कर दी।
विगत ८-१० वर्षों से में पूज्यपाद के समुदाय से जुड़ा हुआ हूँ और मेरी द्दढ़ मान्यता है कि आचार्य श्री पद्मयागरसूरिजी महाराज जैन संस्कृति और साहित्य के दिग्गज रक्षक तथा कला क्षेत्र व अन्य विधाओं के मर्मज्ञ होने के उपरांत आपश्रीने भारत की एकता, साम्प्रदायिक सामंजप्तय और विविध कार्यो के समन्वय को अपना कर मानव मात्र के कल्याण को जीवन संदेश बना कर उसे साकार करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील है ।
___ वह अपने प्रवचनों में प्रायः कहते है : 'मैं सभी का हूँ और सभी मेरे हैं। प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना हैं । मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज का जाति के लिए नहीं, अपितु सब के लिए है । मैं इसाइयों का पादरी, मुस्लिमों का फकीर, हिंदुओं का सन्यासी और जैनियों का आचार्य हूँ ।'
___ वस्तुत : प्रस्तुत कार्य प्रदान कर पूज्यवरोंने मेरे कार्य के प्रति अटूट आस्था व विश्वास दर्शाया है। आशा है “पथ के फूल'' कति उनके विश्वास को बरकरार रखने में सफल सिद्ध होगी और भविष्य में भी साहित्य-साधना के विविध अवसर प्रदान करेगी।
३११, रविवार वेट पूना : ४९९००२
-- रंजन परमार
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