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वाला होता है, तो परिवार के लोग पहले से ही सोचना शुरू कर देते हैं कि उसे कौन सा नाम दिया जाए। तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है? क्योंकि तुम्हारे संसार में फिर से कोई अनजाना और अजनबी आ रहा है। कोई न कोई लेबल उस पर तुरंत लगाना है। जब तुम बच्चे पर लेबल लगा देते हो, तब तुम संतुष्ट हो जाते हो तब तुम जानते हो कि यह राम है, कि रहीम है-कुछ तो है।
सभी नाम निरर्थक हैं। और जब कोई छोटा बच्चा जन्म लेता है, तो उसके पास कोई नाम नहीं होता। वह परमात्मा की भांति अनाम होता है। लेकिन फिर भी उसे कोई नाम देना पड़ता है मनुष्य के मन में नाम के लिए एक खास तरह का आकर्षण और एक तरह की बंधी –बधाई धारणा होती है कि जब किसी को कोई नाम दे दिया गया, तो जैसे कि उसको हमने जान लिया। तब हम पूरी तरह से संतुष्ट हो जाते हैं।
लोग मेरे पास आकर मुझसे पूछते हैं, 'आप कौन हैं? हिंदू हैं, जैन हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं -कौन हैं आप?'
अगर वे मुझे हिंदू की कोटि में रखते हैं, तो वे संतुष्टि अनुभव करते हैं –कि वे मुझको जानते हैं। अब यह 'हिंदू' शब्द, उन्हें यह जानने की एक झूठी अनुभूति दे देगा कि वे मुझे जानते हैं।
तुम मुझसे पूछते हो, 'आप कौन हैं? आप भक्त हैं, योगी हैं, ज्ञानी हैं, तांत्रिक हैं?'
अगर तुम मेरे ऊपर किसी तरह का लेबल लगा सके, या मेरे लिए कोई नाम खोज सके, तो तुम निश्चित हो जाओगे। तब तुम्हें चैन और शांति मिलेगी, तब फिर कहीं कोई समस्या नहीं रहेगी। लेकिन क्या मेरे ऊपर किसी तरह का लेबल लगा देने से तुम मुझको जान लोगे?
सच तो यह है अगर तुम सच में ही मुझे जानना चाहते हो, तो कृपा करके मेरे और अपने बीच कोई नाम मत लाना। सभी तरह की कोटियां गिरा देना। और मुझे बिना किसी नाम और कोटि के आंखें खुली रखकर सीधे देखना। मुझे बिना किसी जानकारी के, सीधी -सरल, निर्दोष दृष्टि से देखना, ऐसी दृष्टि से जिसमें कोई धारणा, सिद्धांत और पूर्वाग्रह न हों। और तब तुम मुझे समग्ररूपेण देख सकोगे। फिर तुम मुझे सीधे देख सकोगे। यही एकमात्र ढंग है मुझे जानने का, यही एकमात्र ढंग है सत्य को जानने का।
गुलाब की तरफ देखना, लेकिन 'गुलाब' शब्द को भूल जाना। वृक्ष की तरफ देखना, लेकिन 'वृक्ष' शब्द को भूल जाना। हरियाली को देखना, लेकिन 'हरा' शब्द भूल जाना। और शीघ्र ही तुम परमात्मा की अदभुत उपस्थिति के प्रति जागरूक हो जाओगे जो कि तुम्हें चारों ओर से घेरे हुए है।