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स्वस्थ और स्वाभाविक न हो पाएगा। इसकी 'शल्य -चिकित्सा की सख्त जरूरत है, उन विशेषज्ञों ने
कहा।
वे सभी लोग अंधे थे। वे सोच भी न सकते थे कि कैसे किसी आदमी के पास आंखें भी हो सकती हैं। यह आंखें तो अस्वाभाविक हैं, इस आदमी को स्वाभाविक बनाने के लिए इसकी आंखों को निकाल देना चाहिए।
वह यात्री उस वादी में एक अंधी युवती के प्रेम में पड़ गया। उस स्त्री ने उससे निवेदन किया कि वह अपनी आंखें निकलवा दे जिससे कि वे दोनों सुखपूर्वक रह सकें।
'क्योंकि, 'उस युवती ने कहा, 'अगर तुमने अपनी आंखें न निकलवाई, तो मेरा समाज तुम्हें स्वीकार न करेगा। तम अस्वाभाविक हो, तम मेरे समाज के लिए इतने अलग, इतने अजनबी हो कि तम आंखें निकलवा दो। किसी दुर्भाग्य की मार तुम पर आ पड़ी है। हमने तो कभी इन आंखों के बारे में किसी से कुछ सुना नहीं है। और तुम लोगों से पूछ सकते हो. किसी ने कभी देखा नहीं है। इन्हीं दो आंखों के कारण तुम मेरे समाज में अजनबी हो, और यह समाज के लोग मुझे तुम्हारे साथ रहने की आज्ञा न देंगे। और मुझे भी तुम्हारे साथ रहने में थोड़ा भय लगता है, क्योंकि आंखों के कारण तुम कुछ अलग हो।'
उस युवती ने उस युवक पर बहुत जोर डाला, उसकी बहुत खुशामद और मिन्नतें कीं कि वह अपनी आंखें निकलवा दे, ताकि वे दोनों सुखपूर्वक साथ-साथ रह सकें। और उसने यह प्रस्ताव करीब - करीब स्वीकार कर ही लिया था, क्योंकि वह यात्री उस अंधी युवती के प्रेम में पड़ गया था -उसी प्रेम के वशीभूत होकर और उसके मोह में फंसकर वह अपनी आंखें तक खोने के लिए तैयार हो गया था -लेकिन जब वह निर्णय लेने ही वाला था कि एक सुबह उसने पहाड़ों के बीच में से सूर्योदय होते देखा, और सफेद फूलों से भरी सुंदर हरी – भरी वादियों को उसने देखा उसके बाद फिर वह अपनी आंखें गंवाकर उस वादी में संतुष्ट रहता, यह उसके लिए संभव न था। वह वापस अपने देश लौट आया।
बुद्ध, जीसस, कृष्ण, जरथुस्त्र, ये लोग अंधों की वादी में आंख वाले लोग हैं। फिर चाहे किसी भी नाम से तुम उनको पुकारों -योगी कहो, बुद्ध कहो, जिन कहो, क्राइस्ट कहो, या भक्त कहो। चाहे किसी भी नाम से पुकारो, लेकिन तुम्हारी सारी कोटियां केवल इतना ही कहती हैं कि वे तुम से अलग हैं, कि उनके पास दर्शन की, देखने की क्षमता है, कि उनके पास आंखें हैं, कि वे ऐसा कुछ देख सकते हैं जिसे तुम नहीं देख सकते हो।
और ऐसे आंख वाले लोगों से तुम नाराज होते हो, प्रारंभ में तो तुम उनका विरोध करते हो और फिर चाहे बाद में, उनका अनुसरण करने लगो, उनकी पूजा करने लगो। क्योंकि उनकी अंतर्दृष्टि, तुम्हारे विरोध के बावजूद, तुम में एक गहन आकांक्षा और अभीप्सा निर्मित कर देती है। अचेतन रूप से