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विस्तृत ज्ञान और गहन परिश्रम का परिचायक
'जैनमत व ओसवंश' का प्रथम खण्ड देखने का अवसर मिला । प्रयत्न स्तुत्य है। डॉ. महावीरमल लोढ़ा व उनके अग्रज चंचलमल लोढ़ा ने जिस प्रयत्न को हाथ में लिया है, वह श्रमसाध्य होते हुए भी अत्यन्त महत्व का है । जैनमत भारत के प्राचीनतम धर्मों में से एक है और उसकी दार्शनिक मान्यताओं ने समस्त भारतीय जीवन, आचार, संस्कृति व चिन्तन को प्रभावित किया है और इसी वैशिष्ट्य ने राजनीतिक एवं सामाजिक उथलपुथलों में एक अत्यन्त उच्च जीवन पद्धति को भारत में प्रवाहित होने दिया और विश्व शान्ति हेतु उच्च मानदण्डों को स्थापित किया। जैनों का इतिहास सम्पूर्ण भारतीय परम्परा का इतिहास है।
25.9.99
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ग्रन्थ में जैन आचार्यों व आध्यात्मिक प्रवाह का जिस गहराई से वर्णन किया गया है और उसमें जैनों के अतिरिक्त वैदिक पौराणिक मान्यताओं का समावेश किया गया, वह लेखक के विस्तृत ज्ञान और गहन परिश्रम का परिचायक है ।
ओसवंशियों की मूल उत्पत्ति क्षत्रियों से हुई, पर इतिहास की गहराईयों में जावें तो और इसके साथ अन्य अनेक वैश्य जातियों का जैन धर्म में प्रवेश देश की विभिन्न दार्शनिकों धाराओं का संघर्ष और उनमें से जैन विचारधारा को सुरक्षित निकालने का प्रयत्न इतिहास का महत्वपूर्ण पहलू है और उस पहलू पर भी और गहराई से चिन्तन हो तो इतिहास के अनेक अधखुले पृष्ठ उजागर हो सकेंगे, मैं परमप्रभु से इस प्रयत्न की सफलता की प्रार्थना करता हूँ।
पालाल सालेचा
चम्पालाल सालेचा
सदस्य नाकौड़ा जैन तीर्थ ट्रस्ट, मेवानगर ( बाड़मेर जिला, राजस्थान)
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