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49, हिम्मत नगर, टोंक रोड़, जयपुर
श्रीपाल जैन दिनांक 6-10-99
संदर्भ ग्रंथ के लिये सार्वजनिक सम्मान के पात्र
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यह तथ्य तो सर्वविदित है कि श्वेताम्बर जैन मत तथा ओसवाल जाति एक-दूसरे से अभिन्न हैं और उनका इतिहास परस्पर गुम्फित है। इस बिन्दु को दृष्टि में रख विद्वान लेखक डॉ. महावीरमल लोढ़ा ने जैनमत और ओसवंश" का लेखन प्रस्तुत किया है, जिसमें वे पूर्ण रूप से सफल हुए हैं। पूर्वाग्रहरहित होकर डॉ. लोढ़ा ने ओसवाल जाति, ओसिया नगरी और विभिन्न गोत्रों के प्रादुर्भाव के सम्बन्ध में विभिन्न प्रचलित मतों का सम्यक् आकलन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कर अपने विचारों को पाठकों के समक्ष रखा है। जैन धर्म के उत्थान-पतन का काल विभाजन उनका मौलिक चिन्तन है। अपने पक्ष को शिलालेखों, पट्टावलियों, भोजकों और भाटों के कवित्तों, अधिकारी इतिहासवेत्ताओं के कथनों का सहारा लेकर तर्कयुक्त रूप में प्रस्तुत किया है। इस विशद फलक को चित्रित करने में उनको कितना कठोर परिश्रम करना पड़ा होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। वास्तव में यह पुस्तक एक संदर्भ ग्रंथ का रूप धारण कर चुकी है और भविष्य में इस विषय पर लिखने वालों के लिये यह प्रेरणा स्रोत बनेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। प्रत्येक ओसवाल के घर में इस पुस्तक का होना एक अनिवार्यता बन गई है। डॉ. लोढ़ा अपने प्रयास के लिये न केवल बधाई, अपितु समाज द्वारा सार्वजनिक सम्मान के पात्र भी हैं।
मानन
श्रीपाल जैन
प्राचार्य (से.नि.) महाविद्यालय शिक्षा, राजस्थान सरकार,
जयपुर
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