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पात्र विषयक चौदह दृष्टान्त
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पात्र विषयक चौदह दृष्टांत अब पाँच ज्ञान के प्ररूपक श्री नन्दी सूत्र का आरम्भ होता है। ज्ञान प्ररूपणा के पूर्व, 'ज्ञान की प्ररूपणा किसे देना योग्य है और किसे देना योग्य नहीं' - यह बताने के लिए सूत्रकार, लोक प्रसिद्ध चौदह उपमाओं की संग्रहणी गाथा प्रस्तुत करते हैं -
१. सेल-घण २. कुडग ३. चालणि, ४. परिपूणग ५. हंस ६. महिस ७. मेसे य। ८. मसग ९. जलूग १०. बिराली, ११. जाहग १२. गो १३. भेरी १४. आभीरी ॥५१॥
१. मुद्गशैल और घन-मेघ, २. कुट-घड़ा, ३. चालनी ४. परिपूणक-सुघरी नामक पक्षी. का घोंसला, जिसमें घी छाना जाता था, ५. हंस ६. महिष-भैंसा, ७. मेष-मेढ़ा, ८. मशक-मच्छर ९. जलौका-विकृत रक्त चूसने वाला एक जलचर जन्तु १०. बिल्ली ११. जाहक-सेल्हक, चूहे की जाति का तिर्यंच विशेष १२. गाय १३. भेरी और १४. अहीर।।
- भावार्थ - जो १. मुद्गशैल के समान अपरिणामी हो या २. दुर्गन्धित घट की भांति दुष्परिणामी हो, ३. चालनी के सामान अग्राही हो या ४. परिपूणक के समान दोष-ग्राही हो ५. भैंसे के समान अन्तराय करने वाला हो या ६: मच्छर के समान असमाधि करने वाला हो ७. बिल्ली के समान विनय नहीं करने वाला हो, या ९. गाय-असेवक ब्राह्मणों के समान वैयावृत्य नहीं करने वाला हो ९. भेरी नाशक के समान भक्ति न करने वाला हो या ज्ञान का प्रत्यनीक-शत्रु हो और १०. स्वदोष नहीं देखने वाले अहीर की भाँति आशातना करने वाला या ज्ञान का विसंवादी हो वह ज्ञान का अपात्र है। उसे ज्ञान देना अयोग्य है। ___ जो १. काली मिट्टी की भांति परिणामी हो २. सुगन्धित घट के समान सुपरिणामी हो ३. कमण्डलु के समान ग्राही हो, ४. हंस के समान गुणग्राही हो, ५. मेष के समान अन्तराय नहीं करने वाला हो ६. जलौका के समान समाधि उपजाने वाला हो ७. जाहक के समान विनय करने वाला हो ९. गायसेवक ब्राह्मणों के समान वैयावृत्य करने वाला हो ९. भेरी रक्षक के समान भक्ति करने वाला हो, या ज्ञान का अप्रत्यनीक हो और १०. स्वदोष देखने वाले अहीर की. भौति आशातना नहीं करने वाला हो या विसंवाद नहीं करने वाला हो, वह ज्ञान का पात्र है। उसे ज्ञान दिया जाय।
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