________________
२४
नन्दी सूत्र
*******************************************************************
*****************
वाले बन जाते हैं तथा जिन्हें शिथिलाचारियों का अधिकतम संसर्ग मिलता है वे निकाचित विकृत धर्म संस्कार वाले बन जाते हैं। ऐसे जीवों को यदि श्रुतज्ञान दिया जाये, तो भी प्रायः उनके वे तथारूप कुसंस्कार दूर नहीं होते, किन्तु वे श्रुतज्ञान को ही मिथ्या रूप में परिणत कर लेते हैं और दूसरे पिपासुओं को भी वे उस श्रुतज्ञान को मिथ्याश्रुत रूप में परिणत कर पिलाते हैं। अतएव ऐसे दुष्परिणामी श्रोता, श्रुतज्ञान के प्रायः अपात्र हैं।
___४. कुछ पुराने घड़े अनिकाचित दुर्गन्ध वाले होते हैं। उन में जब अल्प दुर्गन्ध वाले-लहसुन मदिरादि पदार्थ रखे जाते हैं या अल्प मात्रा में रखे जाते हैं अथवा अल्प समय के लिए रखे जाते हैं, तो उनमें अल्प दुर्गन्ध होती है। उन घड़ों में यदि जल भरा जाता है तो कुछ समय में उनकी दुर्गन्ध दूर हो जाती है और उनमें बाद में भरा हुआ जल ठीक रूप में रहता है तथा पीने वालों को भी उसी रूप में मिलता है। वैसे ही कुछ युवक और वृद्ध अनिकाचित नास्तिक संस्कार वाले या अन्य धर्म संस्कार वाले या विकृत धर्म संस्कार वाले होते हैं, जिन्हें नास्तिकों का मन्द संसर्ग होता है। वे अनिकाचित नास्तिक संस्कार वाले बनते हैं तथा जिन्हें अन्य दर्शनियों का मन्द संसर्ग होता है, वे अन्य धर्म संस्कार वाले बनते हैं तथा जिन्हें शिथिलाचारियों का मन्द संसर्ग मिलता है, वे विकृत धर्म संस्कार वाले बनते हैं। ऐसे को श्रुतज्ञान देने से उनके तथारूप कुसंस्कार प्रायः दूर हो जाते हैं और पीछे उन्हें दिया हुआ श्रुतज्ञान सम्यक् रूप में परिणत होता है तथा उनसे अन्य पिपासुओं को भी सम्यक् रूप में श्रुतज्ञान मिलता है। अतएव ऐसे सुपरिणामी श्रोता, श्रुतज्ञान के पात्र हैं।
५. कुछ पुराने घड़े निकाचित सुगंध वाले होते हैं। जिन घड़ों में तीव्र सुगन्ध वाले-कपूर, चन्दन, अगर आदि पदार्थ, पूर्ण भर कर बहुत वर्षों तक रखे जाते हैं ऐसे घड़ों में यदि जल भरा जाय, तो वह सुगंधित बन जाता है और पीने वाले को सुगंधित जल पीने को मिलता है। वैसे ही कुछ वृद्ध और युवक होते हैं, जो निकाचित शुद्ध धर्म संस्कार वाले होते हैं। जिन्हें शुद्ध दृढ़ाचारी संतों का अधिक संसर्ग होता है। ऐसे जीवों को श्रुतज्ञान देने से वह सम्यग् रूप में परिणत होता है
और वे दूसरे पिपासुओं को भी श्रुतज्ञान, सम्यग् रूप में पिलाते हैं। अतएव ऐसे सुपरिणामी श्रोता, श्रुतज्ञान के पात्र हैं। ___६. कुछ पुराने घड़े अनिकाचित दुर्गन्ध वाले होते हैं। जिन घड़ों को सुगंधित पदार्थों का अल्प समय का संयोग मिलता है, वे घड़े ऐसे बनते हैं। ये घड़े कालान्तर में सुगन्धित से दुर्गन्धित भी बनाये जा सकते हैं। ऐसे घड़ों में जल भरा जाय तो वह भविष्य में दुर्गन्धित बन सकता है
और दूसरे पीने वालों को भी दुर्गन्धित जल पीने को मिलता है। ऐसे ही कुछ युवक और वृद्ध होते हैं, जिन्हें शुद्ध धर्म की श्रद्धा, मन्द होती है। वे किसी समय अन्य संसर्ग को प्राप्त करके शीघ्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org