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मति ज्ञान - वरधनु की चतुराई
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उसी गच्छ में चार तपस्वी साधु थे। वे एक-एक से बढ़कर थे। नागदत्त, उन तपस्वी मुनियों की खूब विनय-वैयावृत्य किया करता था। एक बार उसे वन्दना करने के लिए देवता आये। यह देखकर उन तपस्वी मुनियों के हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न हो गई। एक दिन नागदत्त मुनि अपने लिए गोचरी लेकर आया। उसने विनयपूर्वक उन मुनियों को आहार दिखलाया। ईर्ष्यावश उन्होंने उसमें थूक दिया। यह देखकर भी नागदत्त मुनि शांत बने रहे। उनके हृदय में किसी प्रकार का क्षोभ उत्पन्न नहीं हुआ। वे अपनी निंदा और तपस्वी मुनियों की प्रशंसा करने लगे। उपशांत चित्तवृत्ति के कारण तथा परिणामों की विशुद्धता बढ़ते-बढ़ते उनको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। केवलज्ञान का उत्सव मनाने के लिए देव आने लगे। यह देखककर उन तपस्वी मुनियों को भी अपने ही कार्य के लिए पश्चात्ताप होने लगा। परिणामों की विशुद्धता के चलते उनको भी केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।
नागदत्त मुनि ने प्रतिकूल संयोग में भी समभाव रखा, जिसके परिणाम स्वरूप उसको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। यह उसकी 'पारिणामिकी बुद्धि' थी।
. ११. वरधनु की चतुराई
(अमात्य पुत्र) कम्पिलपुर में ब्रह्म नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम चुलनी था। रानी ने एक प्रतापी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'ब्रह्मदत्त' रखा गया। ब्रह्म राजा के मंत्री का नाम धनु था। धनु के पुत्र का नाम वरधनु था। ब्रह्मदत्त और वरधनु दोनों में गहरी मित्रता थी। .. कुमार ब्रह्मदत्त जब बालक था, उसी समय ब्रह्म राजा की मृत्यु हो गई। कुमार छोटा था। इसलिए राज्य का कार्य ब्रह्म राजा के मित्र 'दीर्घपृष्ठ' को सौंपा गया। कुछ समय पश्चात् रानी चुलनी का दीर्घपृष्ठ के साथ स्नेह हो गया। उन दोनों ने कुमार ब्रह्मदत्त को अपने प्रेम में बाधक समझ कर उसे मार डालने के लिए षड्यंत्र रचा। तदनुसार उन्होंने एक लाक्षा-गृह तैयार करवाया। ब्रह्मदत्त कुमार का विवाह किया और दम्पती को सोने के लिए लाक्षा गृह में भेजा। कुमार के साथ वरधनु भी लाक्षा-गृह में गया। आधी रात के समय दीर्घपृष्ठ और चुलनी रानी के द्वारा भेजे हुए पुरुष ने लाक्षा गृह में आग लगा दी। उस समय मंत्री द्वारा बनवाई हुई गुप्त सुरंग से ब्रह्मदत्त कुमार
और मंत्री-पुत्र वरधनु बाहर निकल कर भाग गये। भागते हुए 'जब वे एक घने जंगल में पहुँचे तो ब्रह्मदत्त को बड़े जोर से प्यास लगी। उसे एक वट वृक्ष के नीचे बिठा कर वरधनु पानी लाने के लिए गया।
इधर दीर्घपृष्ठ को जब मालूम हुआ कि कुमार ब्रह्मदत्त लाक्षा-गृह से जीवित निकल कर
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