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श्रुतं ज्ञान के भेद-प्रभेद - दृष्टिवाद
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८. कर्मप्रवाद पूर्व में ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों की प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश, उत्तर प्रकृतियाँ, अबाधाकाल, संक्रमण आदि का विस्तार से कथन था।
९. प्रत्याख्यानप्रवाद पूर्व में मूलगुण प्रत्याख्यान, उत्तरगुण प्रत्याख्यान, सर्वफल, देशफल आदि विस्तार से कथन था।
१०. विद्यानुप्रवाद पूर्व में अनेक अतिशय संपन्न विद्याओं की साधना प्रयोग, आराधनाविराधना आदि का विस्तार से कथन था।
११. अवन्ध्य पूर्व में ज्ञान, तप, संयम आदि सुकृत तथा प्रमाद कषाय आदि दुष्कृत, नियम से शुभ-अशुभ फल देते हैं, कभी विफल नहीं होते, इसका विस्तार से कथन था।
१२. प्राणायु पूर्व में, श्रोत्रबल प्राण आदि प्राणों का तथा नरकायु आदि आयुओं का विस्तार से कथन था।
१३. क्रियाविशाल पूर्व में १३ क्रिया, पच्चीस क्रिया, छेद क्रिया आदि का विस्तार से कथन था। १४. लोकबिन्दुसार पूर्व में सर्वाक्षर सन्निपात लब्धि उत्पन्न हो, ऐसा सर्वोत्तम ज्ञान था। पूर्वो के पदों का परिमाण इस प्रकार है - पहले उत्पाद पूर्व में
१ करोड़ पद थे। दूसरे अग्रायणीय पूर्व में
९६ लाख। तीसरे वीर्यप्रवाद पूर्व में
७० लाख। चौथे अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व में
६० लाख पाँचवें ज्ञानप्रवाद पूर्व में
एक कम १ करोड़। छठे सत्यप्रवाद पूर्व में
छह अधिक १ करोड़। सांतवें आत्मप्रवाद पूर्व में
२६ करोड़। आठवें कर्मप्रवाद पूर्व में
१ करोड ८० सहस्र। नौवें प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व में
८४ लाख। दसवें विद्यानुप्रवाद पूर्व में
१ करोड १० लाख। ग्यारहवें अवन्ध्य पूर्व में
२६ करोड़। बारहवें प्राणायु पूर्व में
१ करोड ५६ लाख। तेरहवें क्रियाविशाल पूर्व में
९ करोड़। चौदहवें लोकबिन्दुसार पूर्व में
१२ करोड ५० लाख पद थे। - इन सब को मिलाकर कुल ८३ करोड २६ लाख ८० सहस्र ५ पद थे। ऐसा टीका ग्रन्थों में परिमाण पाया जाता है।
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