Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 299
________________ २८२ नन्दी सूत्र एक जीव को आगम से एक द्रव्य अनुज्ञा मानता है, उपयोग रहित दो जीवों को, आगम से अनेक द्रव्य अनुज्ञा मानता है, उपयोग रहित तीन जीवों को आगम से तीन द्रव्य अनुज्ञा मानता है। इस प्रकार जितने उपयोग रहित जीव हैं, आगम से उतने ही द्रव्य अनुज्ञा मानता है (क्योंकि विशेष दृष्टि से सभी में अनुज्ञा पद या अनुज्ञा नंदी का अनुपयोग पृथक्-पृथक् है)। एवामेव ववहारस्स वि। सात नयों में तीसरा व्यवहार नय अर्थात् अनेक वस्तुओं में रही अनेकता को देखने वाला भी, आगम से द्रव्य अनुज्ञा इसी प्रकार (नैगम नय के समान एक अनेक) मानता है। .. संगहस्स एगो वा, अणेगो वा, अणुवउत्तो वा, अणुवउत्ता वा, आगमओ दव्वाणुण्णा वा, दव्वाणुण्णाओ वा, स एगा दव्वाणुण्णा। सात नयों में दूसरा संग्रह नय (अर्थात् अनेक वस्तुओं में रही एकता को देखने वाला) चाहे उपयोग रहित एक जीव हो या उपयोग रहित अनेक जीव हों, एक ही द्रव्य अनुज्ञा मानता है (क्योंकि सभी में सामान्य दृष्टि से अनुज्ञापद या अनुज्ञानंदी-आगम में अनुपयोग समान ही है)। उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो, आगमओ एगा दव्वाणुण्णा, पुहुत्तं णेच्छइ। सात नयों में चौथा ऋजुसूत्र नय अर्थात् वर्तमान काल की और अपनी ही वस्तु को देखने वाला, यदि स्वयं वर्तमान में अनुज्ञा पद या अनुज्ञा नंदी में उपयोग रहित है, तो स्वयं को आगम से एक द्रव्य अनुज्ञा मानता है। अपनी अगली-पिछली उपयोग रहित अवस्था को या अन्य उपयोग रहित जीवों को आगम से द्रव्य अनुज्ञा नहीं मानता (क्योंकि अपनी वर्तमान दशा ही स्वयं के लिए वर्तमान में सार्थक है, शेष सब स्वयं के लिए वर्तमान में निरर्थक है।)। तिण्हंसद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थु। सात नयों में पिछले तीन-शब्द नय, समभिरूढ़ नय और एवंभूत नय। जो शब्द नय है (अर्थात् शब्द का विचार करने वाले हैं) वे आगम से द्रव्य अनुज्ञा को अर्थात् जो अनुज्ञा को जानता है, परन्तु उपयोग रहित है, उसे यथार्थ वस्तु ही नहीं मानते। कम्हा? जइ जाणए, अणुवउत्ते ण भवइ, जइ अणुवउत्ते जाणए ण भवइ, तम्हा णत्थि आगमओ दव्वाणुण्णा। से त्तं आगमओ दव्वाणुण्णा। शंका - ऐसा क्यों? समाधान - इसलिए कि ये शब्द नय कहते हैं कि - यदि शब्द के अर्थ पर विचार किया जाय, तो 'जानता है और उपयोग रहित है' यह परस्पर विरोधी कथन हैं। यदि 'जानता है, तो वह उपयोग रहित नहीं हो सकता और यदि 'उपयोग रहित' है, तो वह जानता ही नहीं है। क्योंकि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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