Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 311
________________ २९४ **************************************************** नन्दी सूत्र * * * १३. मार्ग - अनुज्ञा, श्रुतज्ञान को प्राप्त करने का मार्ग है और अनुज्ञापूर्वक का श्रुतज्ञान मार्ग रूप बनता है, अतएव अनुज्ञा को 'मार्ग' कहते हैं। १४. संग्रह - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से श्रुत का अधिक संग्रह होता है, अतएव अनुज्ञा . को 'संग्रह' कहते हैं। १५. संवर - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से अनंतर ज्ञानावरणीय कर्म का नूतन बंध रुकता है, और परंपर सर्व कर्म का बंध रुकता है, अतएवं अनुज्ञा को 'संवर' कहते हैं। १६. निर्जरा - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से मुख्यतया पुराने ज्ञानावरणीय कर्मों की और साथ में अन्य सात कर्मों की भी निर्जरा होती है, अतएव अनुज्ञा को 'निर्जरा' कहते हैं। १७. स्थितिकरण - अनुज्ञापूर्वक सीखा हुआ श्रुतज्ञान, आत्मा को आराधक बनाकर आत्मा की मोक्षमार्ग में स्थिति को सुदृढ़ बनाता है। अतएव अनुज्ञा को 'स्थितिकरण' कहते हैं। १८. जीववृद्धि पद - अनुज्ञापूर्वक सीखा हुआ श्रुतज्ञान, जीव में उत्तरोत्तर अन्यान्य गुणों की वृद्धि करता है, अतएव अनुज्ञा को 'जीववृद्धि पद' कहते हैं। १९. पद - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने वाला, श्रुतज्ञान और श्रुतार्थियों के लिए आधारभूत बन जाता है, पद के योग्य बनता है, अतएव अनुज्ञा को 'पद' कहते हैं। २०. प्रवर - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से, श्रुतज्ञान अधिकाधिक निर्मल और तेजस्वी होता है, अतएव अनुज्ञा को 'प्रवर' कहते हैं। ____ इस प्रकार नन्दी का परिशिष्ट अनुज्ञा नन्दी समाप्त हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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