Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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लघु नन्दी (योग क्रिया रूप बृहद् नन्दी) णाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा - १. आभिणिबोहियणाणं, २. सुयणाणं, ३. ओहिणाणं, ४. मणपज्जवणाणं, ५. केवलणाणं। तत्थ चत्तारि णाणाइं, ठप्पाइं, ठवणिज्जाइंणो उद्दिसिज्जंति णो समुद्दिसिज्जंति णो अणुण्णविजंति।सुयणाणस्स पुण १. उद्देसो, २. समुद्देसो, ३. अणुण्णा , ४. अणुओगो य पवत्तइ। ___ जइ सुयणाणस्स.उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगोयपवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ? किं अंग बाहिरस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगोयपवत्तइ?अंगपविट्ठस्सवि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ, अंग बाहिरस्स वि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ। - ज़इ अंगबाहिरस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ, किं आवस्सगस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ? आवस्सग वइरित्तस्स वि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ? आवस्सगस्स वि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ।आवस्सगवइरित्त उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ। जइ आवस्सगस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुएणा, अणुओगो य पवत्तइ, किं सामाइयस्स, चउव्वीसत्थस्स, वंदणस्स, पडिक्कमणस्स, काउस्सगस्स पच्चक्खाणस्स-सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ।
जइ आवस्सग वइरित्तस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ, किं कालियसुयस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ? किं उक्कालियसुयस्स उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ? कालियसुयस्स वि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ, उक्कालियसुयस्सवि उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवत्तइ।
0 इनमें से (श्रुतज्ञान को छोड़कर) चार ज्ञान स्थाप्य हैं। ये जिसमें हैं, उसी में रहते हैं, देने-लेने के व्यवहार में नहीं आते। इनका उद्देश समद्देश आदि नहीं होता।
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