Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 310
________________ अनुज्ञा नंदी २. उन्नमनी ३. नमनी ४. नामनी ५. स्थापना ६. भाव ७ प्रभावना ८. प्रचार ९ तदुभय हित १०. मर्यादा ११. न्याय १२. मार्ग १३. कल्प १४. संग्रह १५. संवर १६. निर्जरा १७. स्थितिकरण १८. जीववृद्धि पद १९. पद और २०. प्रवर । विवेचन १. अनुज्ञा - विनय, क्षमा, सुशीलता आदि सूत्रार्थ को धारण करने और सिखाने के अनुकूल गुण प्राप्त होने पर गुरुदेव शिष्य को अनुज्ञा के योग्य जान कर अनुज्ञा देते हैं, अतः इसे 'अनुज्ञा' कहते हैं । २. उन्नमनी 'उन्नमनी' कहते हैं । - - - Jain Education International ३. नमनी - अनुज्ञा आत्मा को 'नम्र' विनीत बनाती है, अतएव अनुज्ञा को 'नमनी' कहते हैं। ४. नामनी - अनुज्ञा, गुरुदेव के हृदय को भी नम्र करती है (सूत्रार्थ धराने की भावना न हो, तो भी भाव उत्पन्न कर देती है), अतएव अनुज्ञा को 'नामनी' कहते हैं । ५. स्थापना - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान धारण करने से श्रुत के शब्द हृदय में स्थापित हो जाते हैं- स्थिर हो जाते हैं, अतएव अनुज्ञा को स्थापना' कहते हैं । ६. भाव अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान को धारण करने से श्रुत के भाव हृदयंगम हो जाते हैं, अतएव अनुज्ञा को 'भाव' कहते हैं । २९३ **** अनुज्ञा जीवन को उन्नत बनाती है ( पात्र बनाती है), अतएव अनुज्ञा को ७. प्रभावना - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से श्रुतज्ञान, आत्मा को प्रभावित करता है तथा दर्शकों को भी प्रभावित करता है, अतएव अनुज्ञा को 'प्रभावना' कहते हैं । ८. प्रचार - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से जगत् में श्रुतज्ञान का महत्त्व बढ़ कर श्रुतज्ञान का प्रचार होता है, अतएव अनुज्ञा को 'प्रचार' कहते हैं। ९. तदुभय हित अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से सीखने वाले सिखाने वाले का और अन्य का भी हित होता है, अतएव अनुज्ञा को 'तदुभय हित' कहते हैं । १०. मर्यादा - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से शिष्य सम्यक् श्रुत की मर्यादा में रहता है (सूत्र विरुद्ध श्रद्धा प्ररूपणा और स्पर्शना वाला नहीं बनता) और अनुज्ञापूर्वक ज्ञान ग्रहण यह मर्यादा है, अतएव अनुज्ञा को 'मर्यादा' कहते हैं। ११. न्याय - अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान सीखने से श्रुतज्ञान का नियमित लाभ होता है और श्रुतज्ञान पाना हो तो अनुज्ञापूर्वक लेना न्याय है, अतएव अनुज्ञा को 'न्याय' कहते हैं । १२. कल्प यदि कोई श्रुतज्ञान आदि में बड़ा भी हो और उसे किसी छोटे से कोई अभिनव ज्ञान लेना हो, तो उसका भी कल्प यह है कि 'अनुज्ञापूर्वक श्रुतज्ञान ग्रहण करे', अतएव अनुज्ञा को 'कल्प' कहते हैं। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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