Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 300
________________ ********* * * * * ****** *********** अनुज्ञा नंदी २८३ ********************* 'जानना' यह क्रिया है और जहाँ जानने की क्रिया है, वह ज्ञान का उपयोग रूप व्यापार अवश्य होगा ही। इसलिए 'आगम से द्रव्य अनुज्ञा' अर्थात् 'अनुज्ञा को जानता भी है और उपयोग रहित भी है'-यह वस्तु ही अयथार्थ है। यह आगम से द्रव्य अनुज्ञा है। से किं तं णो आगमओ दव्वाणुण्णा? णो आगमओ दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - १. जाणगसरीरदव्वाणुण्णा, २. भवियसरीरदव्वाणुण्णा, ३. जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुण्णा। प्रश्न - वह नो आगम से द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? (भाव अनुज्ञा के भूत या भावी कारण को 'नो आगम से द्रव्य अनुज्ञा' कहते हैं अथवा द्रव्य विषयक अनुज्ञा को 'नो आगम से द्रव्य अनुज्ञा' कहते हैं।) उत्तर - नो आगम से द्रव्य अनुज्ञा के तीन भेद हैं - १. ज्ञायक शरीर द्रव्य अनुज्ञा, २. भव्य शरीर द्रव्य अनुज्ञा और ३. ज्ञायक शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अनुज्ञा । से किं तं जाणगसरीरदव्वाणुण्णा? जाणगसरीरदव्वाणुण्णा, 'अणुण्णत्ति' पयत्थाहिगार-जाणगस्स, जं सरीरं, ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं, जीवविप्पजढं, सिज्जागयं वा संथारगयं वा णिसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ भणेज्जा-'अहो णं इमे णं सरीर समुस्सणं जिणदिटेणं भावेणं 'अणुण्णत्ति' पयं आघवियं, पण्णवियं, परूवियं, दंसियं, णिदंसियं, उवदंसियं। प्रश्न - ज्ञायक-शरीर द्रव्य-अनुज्ञा क्या है? .. (अनुज्ञा नन्दी को जानने वाले जीव का वह मृत शरीर, जो भूतकाल में उस जीव को अनुज्ञापद या अनुज्ञा नन्दी जानने में कारणभूत रहा था, वह – 'ज्ञायकशरीर द्रव्य अनुज्ञा' है।) उत्तर - जैसे अनुज्ञापद या अनुज्ञानन्दी को जानने वाले जीव के शरीर को-जो व्यपगत अचेतन बन चुका है, च्युत-प्राणरहित बन चुका है, च्यापित आयुष्य रहित बन चुका है, त्यक्तदेह आहार से होने वाली वृद्धि से रहित बन चुका है, जिसे उस जीव ने त्याग दिया है, वह शय्या पर पड़ा है या उपाश्रय में शरीर प्रमाण पाट आदि पर पड़ा है, संथारे पर पड़ा है-तृण के बिछौने पर या ढ़ाई हाथ प्रमाण पाट आदि पर पड़ा है, नैषेधिका पर पड़ा है-स्वाध्यायभूमि में या एक हस्त प्रमाण आसन पर पड़ा है या सिद्धि-शिला तल (शव परिस्थापन भूमि) पर पड़ा है अथवा शासन सेवक देवता से अधिष्ठित शिला-जहाँ पर संथारा निर्विघ्न समाप्त होता है वहाँ पड़ा है, वह 'ज्ञायक शरीर द्रव्य अनुज्ञा' है। लोग उसे देखकर परस्पर आमन्त्रण करते हुए शोक या विस्मयपूर्वक यह कहते भी हैं कि - "अहो! अमुक जीव ने इस शरीर से अनुज्ञा पद को या अनुज्ञा नंदी को जिनेश्वर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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